अगर आप कमजोर दिल के हैं तो कृपया इस किताब को मत पढ़िए।
इस किताब का उद्देश्य किसी की आस्था को मिटाना नहीं है, वरन् ऐसे कुछ अंधविश्वासों को हटाना है, जिनके तहत हम अपने जीवन को अंधकार करने की बजाय उनसे घिरे रहकर ही अपने जीवन को पूरा कर जाते हैं। हमारा उद्देश्य किसी की आस्था को चोट पहुंचाना नहीं है, इसलिए अगर आपको यह महसूस हो कि इस किताब में लिखी बातें सही हैं तो उन्हें अपनाइएगा अन्यथा एक “नॉवेल” समझकर ठंडे बस्ते में डाल दीजिएगा। किताब शुरू करने से पहले कुछ प्रश्न—
सबसे पहले क्योंकि हम मानव हैं, इसलिए मानवता से संबंधित जो सबसे पहला प्रश्न आता है, वह यह कि क्या वाकई में यह इंसान की योनि चौरासी लाख योनियों के बाद मिलती है?
आप कहेंगे हां। क्योंकि यह आज तक हमें यही बताया गया है।
लेकिन मैं कहूंगा—नहीं! यह सत्य नहीं! क्यों? इसी किताब के अन्य पन्नों पर आपको इसका जवाब मिल जाएगा।
जब हम अपने जीवन की कठिनाइयों से घबरा जाते हैं तो हमें याद आता है ज्योतिष! अपनी जन्मपत्रिका को लेकर हम अनेक ज्योतिषियों से मिलने जाते हैं कोई किसी ग्रह का तो कोई किसी ग्रह का उपाय बताकर हमारी कठिनाइयों को दूर करने का प्रयत्न करता है। क्या वाकई में हमारी जन्मपत्रिका में ऐसा कुछ होता है? यदि होता है तो कितना कुछ?
जब हमें ज्योतिषियों द्वारा भी समाधान नहीं मिलता तो हम फिर अपनी हस्तरेखाओं के पीछे भागते हैं। मालूम नहीं कितना सच या कितना झूठ होता है इन हस्तरेखाओं के पीछे भागते हैं। मालूम नहीं कितना सच या कितना झूठ होता है इन हस्तरेखाओं में! लेकिन ये सच है कि हस्तरेखा विशेषज्ञ “मनोविज्ञान” का सहारा लेकर हमें बेवकूफ बनाने में जरूर कामयाब हो जाते हैं।
जहां पर ज्योतिष और हस्तरेखा भी विफल हो जाते हैं, तब हम “वास्तु” का सहारा लेना पड़ता है। वास्तु विशेषज्ञ तरह-तरह की चीजों का सहारा लेकर हमें फंसाते हैं और फिर, जब ये सारी बातें बेकार साबित हो जाती हैं, तब हम किसी पहुंचे हुए व्यक्ति अर्थात् धर्मगुरु को ढूंढने निकल पड़ते हैं, जो शायद हमारी किस्मत को सुधार सके। परन्तु क्या कोई है ऐसा, जो हमारी किस्मत को सुधार सके! शायद नहीं! क्योंकि यदि ऐसा होता तो क्या वह अपनी किस्मत को नहीं सुधार लेता? यह बात अलग है कि वह हमारी किस्मत को सुधारते-सुधारते अपनी किस्मत को ही सुधार लेता है।
इसके बाद आती है लाल किताब, काली किताब, रावण संहिता और भी न जाने कौन-कौन सी किताबों के द्वारा रत्न-मोती इत्यादि पहनाए जाते हैं। रत्न-मोतियों के नाम पर एक घटना की याद हो आई! घटना का जिक्र जब आपको इसी किताब के अन्य पन्नों पर पढ़ने के लिए मिलेगा, तब आपको इसकी असलियत की जानकारी मिल जाएगी।
जब रत्न-मोती भी आपकी परेशानियों का हल निकाल पाने में असमर्थ हो जाते हैं, तब आप अपनी परेशानियों को दूर करने में यंत्रों-मंत्रों का सहारा लेने लगते हैं। अब कौन सा यंत्र आपकी किस्मत को बदल पाएगा, ये जानने के लिए भी तो आपको किसी यांत्रिक-मांत्रिक का सहारा लेना पड़ेगा। अब ये सहारा आपको कितना सहारा दे सकता है। ये तो आप किताब पढ़ने के बाद ही जान पाएंगे।
तो चलिए, चलते हैं आपकी और अपनी जिंदगी की उस सच्चाई के पास, जिसे हम नकारते हुए भी अपनी जिंदगी से नहीं निकाल पाते। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि जब भी हमें कोई कहता है कि फलां व्यक्ति बहुत पहुंचा हुआ है, हम दुनिया से छिपकर अपनी जन्म-पत्रिका लेकर वहां तक पहुंचने की कोशिश करते हैं कि शायद वह व्यक्ति हमें हमारी परेशानियों से निजात दिला सके। लेकिन क्या ऐसा संभव हो पाता है? शायद नहीं...और शायद हां भी...। अपना-अपना अनुभव है।
अपनी इस किताब को समझाने के लिए आपसे आग्रह है कि आपको इस किताब के नायक के साथ अपने आपको जोड़ना होगा, तभी आप इस किताब का रसास्वादन ले पाएंगे। तर्क मत रखिएगा क्योंकि तर्क कसौटी पर खरे नहीं उतरते|
हां...तो इस किताब का नायक, जिसका नाम क...ख ...ग या चलो “मानव” रख देते हैं, इसके साथ आपको जुड़ना पड़ेगा। आप चाहें कोई भी हो या कोई भी आपका नाम है, जब भी इस किताब को पढ़ने लगें तो स्वयं को “मानव” में ढाल लें। जैसे इस किताब की शुरुआत में मैंने आपसे प्रार्थना की थी कि यदि आप कमजोर दिल के हैं तो इस किताब को मत पढ़िएगा क्योंकि उसका कारण यह था कि यदि आपसे पूछा जाए कि आप क्या भूत-प्रेत में विश्वास रखते हैं तो आप में से कई का जवाब होगा नहीं और शायद कुछ यह कह जाएं कि हमने देखे तो नहीं, परन्तु विश्वास है कि ये सब चीजें होती हैं मतलब उन्हें इन चीजों पर विश्वास होता है।
मैंने ये बात आपसे इसलिए पूछी है कि इस किताब का नायक “मानव” अपने परिवार सहित एक ऐसे घर में पूरे 25 साल बिताकर आया है, जहां पर एक बच्चे की आत्मा भी रहा करती थी। ये बात दीगर है कि उस बच्चे की आत्मा ने कभी भी “मानव” अथवा उसके परिवार को कोई नुकसान पहुंचाया हो। मानव को तो पता भी न था कि वह और उसका परिवार एक ऐसे घर में रह रहे हैं, जहां एक आत्मा का वास है। ये तो उसे एक ऐसे व्यक्ति ने बताया, जो कभी मानव के यहां किराएदार बनकर आया था।
हुआ यूँ था कि वह किराएदार, जो एक लड़का था और शहर में पढ़ने के लिए आया था, एक प्रापर्टी डीलर के माध्यम से मानव से मिला था। मानव को पैसे की जरूरत थी क्योंकि उसने अभी-अभी उसने मकान को एक मंजिल और बनवाया था।
अतः उसने उस लड़के को अपनी निचली मंजिल किराए पर दे दी।
अभी उसे आए हुए पन्द्रह दिन भी नहीं बीते थे कि एक दिन उस किराएदार ने मानव को कहा कि वह यह मकान छोड़ना चाहता है। कारण पूछने पर उसने बस इतना ही कहा कि बस ऐसे ही! जबकि कारण कहीं और छिपा हुआ था।
मानव का परिवार बढ़ा तो उसे यह मकान छोटा लगने लगा था! अतः उसने इस मकान को बेचने का मन बना लिया। बड़ी मशक्कत के बाद, मानव इस मकान को बेच सका था।
मकान बेचने के बाद एक दिन ऐसे ही जब वह बाजार में कुछ सामान लेने के लिए जा रहा था तो उसे वही किराएदार लड़का मिल गया। बातों-बातों में जब मानव ने उसे बताया कि वह मकान बेच चुका है तो उस किराएदार लड़के की जान में जान आई। तब उसने जो बताया उसने मानव को कोई खास अचंभा नहीं हुआ।
उसने बताया कि उस मकान में एक बच्चे की आत्मा रहती है। मानव के पूछने पर कि उसे कैसे पता, तब उस लड़के ने बताया कि एक दिन जब वह खाना बना रहा था तो वह बच्चा वहां “प्रकट” हो गया था। उस बच्चे को देख उसके हाथ से बियर का वो गिलास भी छूटकर दूर जा गिरा, जो खाना बनाते समय उसके हाथ में था। उस लड़के को उस समय और भी विस्मय हुआ, जब मानव ने उसे बताया कि यह सब उसे पता था।
तब उस लड़के ने मानव से अनुरोध किया कि जब उन्हें पता था तो वे उस घर में क्यों रहे? उन्हें कैसे पता चला कि वे एक “ऐसे” घर में रहते हैं, जो इतना “डरावना” है।
तब मानव ने जो कुछ बताया उसे सुनकर किराएदार लड़के का मुंह खुले का खुला रह गया।
बात तब की है, जब मानव बहुत छोटा था। अपने मां-बाप और बहन-भाई के साथ किराए के एक मकान में रहता था। वह मकान दो भाइयों का था जिन्होंने बीच की दीवार को हटाकर उसे एक “हवेली” के रूप में परिवर्तित कर रखा था। उस हवेलीनुमा कोठी में मानव के परिवार के अलावा एक और भी परिवार रहता था, जो बहुत अमीर था। उनके घर में नौकर-चाकर आदि भी थे। बस पूरी हवेली में दो ही किराएदार थे और बाकी सब मकान-मालिक यानि चाचा-ताऊओं के लड़के थे।
एक दिन उस अमीर परिवार के घर की एक नौकरानी, जिसका नाम शायद “गंगा” था आई। मानव अपने कमरे के बाहर बने बरामदे में जिसे वे रसोई के रूप में काम में लेते थे, वहीं बैठा खाना खा रहा था। तभी गंगा आई और खाना बनाते मानव की मां से बतियाने लगी। बातों-बातों में उसने बताया कि वह एक मकान, जो वहां से थोड़ी सी दूरी पर था, खरीदना चाह रही थी। गंगा अभी यह बात कह ही रही थी कि अचानक मानव का खाना खाते-खाते हाथ रुक गया और वह बोला कि अभी वह मकान न खरीदें क्योंकि उस मकान की दहलीज में एक ताबीज दबा हुआ है। पहले उस ताबीज को निकलवाए, फिर उसके बाद ही वह मकान खरीदे।
अब गंगा की डरने की बारी थी। खाना बनाते उसकी मां भी अचंभे से उसका मुंह देख रही थी।
गंगा अचंभित सा मुंह लेकर चली गई।
मानव ने गंगा को जो जगह बताई थी, दो दिन बाद गंगा अपने बेटे व दो मजदूरों को लेकर उस स्थान पर गई। अपने और अपने बेटे की देखरेख में उसने मजदूरों से उस मकान की उस दहलीज को खुदवाना शुरू किया, जो मानव ने उसे बताई थी। दो या तीन फुट खुदाई पर ही उसे एक ताबीज मिला। गंगा ने मजदूरों से उस ताबीज को उठा लाने को कहा। ताबीज देखते ही गंगा सन्न-सी रह गई।
अगले दिन वह पड़ोस में नौकरी के लिए आई। अपना काम निपटाकर गंगा, मानव के घर आई, जहां पर मानव की मां कुछ काम कर रही थी। गंगा को देखते ही मानव की मां ने गंगा से पूछा, “क्या हुआ?” गंगा का जवाब था, “होना क्या था, वही हुआ, जो तुम्हारे बेटे ने कहा था।” मानव की मां का मुंह खुले का खुला रह गया। वह जगह, जो कभी मानव ने तो क्या, उन्होंने भी नहीं देखी थी, मानव को कैसे पता चला कि वहां कोई ताबीज दबा पड़ा है। मां अभी यह सोच ही रही थी कि गंगा ने मानव की मां से पूछा, “मानव कहां है?” मां ने जवाब दिया, “अभी तो यहीं था, कहीं गया होगा। काम क्या है?”
गंगा ने कहा, “बस यही पूछना था कि क्या अब मैं उस मकान को खरीद लूं या नहीं?”
तभी मानव बाजार से कुछ सामान लेकर लौटा तो मां ने कहा “बेटे, गंगा आई है, पूछ रही है कि क्या अब वह उस मकान को खरीद ले?”
“नहीं मां, उससे कहो कि अभी उस मकान में जो कमरे की दहलीज है, वहां पर पांच से सात फुट की गहराई में एक और ताबीज दबा पड़ा है, पहले वह उसे निकलवा ले, तब खरीदने की सोचे।”
मां ने कमरे के बाहर बैठी गंगा को बुलाकर कहा “मानव कह रहा है कि उस मकान में जो कमरा बना हुआ है, उसकी दहलीज में पांच से सात फुट की गहराई में एक ताबीज और दबा हुआ है, उसे और निकलवाओ।”
गंगा के पास इस बात पर यकीन करने के अलावा और कोई चारा नहीं भी न था। आखिर होता भी क्यों नहीं, उसकी पहली बात जो सच हो आई थी।
गंगा एक दिन छोड़कर दूसरे दिन फिर अपने बेटे और उन्हीं दोनों मजदूरों को लेकर वहां पहुंच गई। मकान में अंदर जाने के बाद उसकी आंखों को यकीन ही नहीं हुआ क्योंकि मानव द्वारा जैसा बताया गया था, वैसा ही कमरा वहां बना हुआ था।
उसने दोनों मजदूरों को उस कमरे की दहलीज खोदने के लिए कहा! उसकी आंखें तब फटी की फटी रह गईं, जब सात फुट गड्ढा खोदने के बाद वहां से एक ताबीज मिला। अब तो गंगा के पास मानव पर विश्वास करने के अलावा कुछ चारा न था।
उसने अपने बेटे और दोनों मजदूरों को वहीं से विदा किया। वह वहां से सीधे मानव के घर आई। मानव अपनी मां के साथ घर पर न था। गंगा इतनी बेताब थी कि वह सारी बात मानव और उसकी मां को बता देना चाहती थी, अतः वह वहीं उनकी इंतजार में बैठ गई।
करीब तीन-चार घंटे के बाद मानव अपनी मां को कोई फिल्म दिखाकर लौटा। दरवाजे पर बेताब गंगा को देख मानव के मन में कुछ आशंका-सी हुई। मानव की मां को नमस्ते इत्यादि कहकर गंगा बेताबी दिखाते हुए बोली, “मानव तो बहुत पहुंचा हुआ लगता है। जिस जगह पर उसने बताया था, ठीक उसी जगह से एक ताबीज और निकला है। अब तो उससे पूछ लो कि अब वह मकान खरीद लूं।”
“अभी नहीं” मानव ने वहां खड़े-खड़े ही कहा।
“क्यों, अब क्या बात हुई?”
“क्योंकि अभी भी उसमें एक ताबीज और दबा पड़ा है।” मानव ने कहा।
गंगा अवाक्-सी बैठी कभी मां और कभी मानव के मुंह को देख रही थी। मां को लग रहा था कि शायद मानव पर किसी का साया आ गया है, तभी तो वह वहां बैठे सब-कुछ बता रहा है।
“वह ताबीज कहां है?” गंगा ने पूछा?
“वह उसी कमरे के बीचों-बीच तीन फुट तक की गहराई में दबा पड़ा है।”
मानव ने कहा!
“तो फिर एक बार में ही बता दे कि वहां क्या-क्या दबा पड़ा है?” मां ने कहा!
“मेरी प्यारी मां, उस मकान में सात ताबीज दबे पड़े हैं, जो मकान के विभिन्न कोनों में हैं। उन सातों ताबीजों को निकलवाने के बाद ही गंगा उस मकान को खरीदे तो बहुत लाभ में रहेगी” मानव ने कहा।
“तो वह सारे ताबीज एक ही बार में निकलवा दे न।” मां ने कहा तो मानव बोला, “मुझे नहीं मालूम कि वे कहां-कहां दबे हुए हैं। मुझे तो जैसा दिखाई देता है, मैं बोल देता हूं।”
अब मां को यकीन हो चला था कि जरूर मानव पर किसी “हवा” या “भूत” आदि का साया है।
“तुझे क्या दिखाई देता है?” मां ने पूछा।
“जब गंगा ने पहली बार वह मकान खरीदने की बात कही थी तो मुझे ये लगा था कि जैसे मैं उसी मकान के बाहर खड़ा हूं। जैसे ही मैं उस मकान के अंदर जाने लगा तो मुझे लगा कि मुझे कोई रोक रहा है। बस मैंने कह दिया कि उस मकान की मेन दहलीज में कुछ है और बस मैंने कह दिया। अब वह तीर था या तुक्का, मैं नहीं जानता।”
गंगा मानव की बात सुनकर कुछ घबरा उठी थी। मां का भी बुरा हाल हो चला था। मां को लगा था कि जरूर किसी “हवा” ने मेरे बेटे को पकड़ लिया है, तभी तो वह बहकी-बहकी सी बातें करने लगा है।
गंगा मानव की बातें सुनकर उठ खड़ी हुई | उसने मानव की मां से यह कहकर कि वह बाद में आकर मिलेगी, चली गई। मां के साथ-साथ गंगा के मन में भी यह द्वंद्व उठ खड़ा हुआ था कि जरूर मानव को किसी “साये ” ने पकड़ रखा है। सोचकर भी उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें छलछला आईं थीं। गंगा चली गई थी। मां के मन का द्वंद्व युद्ध उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था जबकि मानव बिल्कुल सामान्य-सा था। मां के मन का द्वंद्व शायद ये कह रहा था कि मानव को किसी झाड़ -फूंक वाले को दिखाया जाए, लेकिन वह तो किसी को जानती भी नहीं।
मां अपने बड़े बेटे के इंतजार में लग गई। पति बीमार रहते थे, उनको ऐसी बात बताना शायद उनके जीवन से खिलवाड़ करने के बराबर हो जाता, इसलिए वह अपने बड़े बेटे के साथ इस समस्या को सुलझाना चाहती थी।
शाम होते ही बड़ा बेटा ट्यूशन पढ़ाकर घर लौटा। शायद घर के मुखिया की इतनी तनख्वाह नहीं थी कि मानव का घर चल पाता। इसलिए बड़े बेटे ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ ट्यूशन पढ़ना भी शुरू कर दिया था।
बड़े बेटे का नाम शायद परेश था।
परेश के घर लौटने के बाद में मां ने उसे गंगा से संबंधित सारी बात जस की तस कह सुनाई और अपनी मन की शंका को भी बताया। परेश भी मां की तरह द्वंद्व युद्ध में फंसकर अवाक्-सा रह गया। उसने परिस्थिति को भांपकर मां को आश्वासन दिया और कोई न कोई हल निकाल लाने के लिए आश्वस्त भी किया।
मां अब हर पल मानव के ऊपर निगाह रखने लगी, लेकिन मां को कहीं भी मानव के हाव-भाव में ऐसी कोई बात नजर नहीं आई, जिससे मां को लगे कि मानव के साथ कुछ “ऐसी-वैसी” कोई चीज है। उधर, गंगा दो-तीन दिन तक घबराहट के मारे नहीं आई। एक दिन जब वह आई तो मां से बोली, “अरे अम्मा, मानव को तो मालूम नहीं कैसे पता चल जाता है। जब मानव ने मुझे बताया तब मैंने वहां जाकर देखा तो एक ताबीज और निकला। अब तो मुझे विश्वास हो चला है कि शायद भगवान ने मुझे किसी संकट से बचाने के लिए ही मानव को भेजा है। अब उससे पूछ लो कि क्या मैं अब उस मकान को खरीद लूं।”
मानव कमरे के अंदर ही बैठा कोई किताब पढ़ रहा था। पढ़ते-पढ़ते ही वह बोल उठा, “नहीं गंगा, उस मकान में जो कमरा बना हुआ है, उसके चारों कोनों में चार ताबीज और दबे पड़े हैं। पहले उन चारों ताबीजों को निकलवा लेना, तभी उस मकान को खरीदना।”
गंगा का मुंह खुला का खुला रह गया। अभी चार ताबीज और भी हैं, सोचकर गंगा असमंजस-सी रह गई। फिर कुछ सोचकर बोली, “और तो कोई परेशानी नहीं है, उस मकान में?”
नहीं” अंदर से ही मानव का जवाब आया, “लेकिन विज्ञानों में खरीद रही हो, तो वो तुमने बताया ही नहीं।”
“बेटा, तीस हजार मांग रहा है, मकान मालिक, लेकिन मेरे पास कुल जमा तेरह हजार ही हैं, एक-दो हजार और इकट्ठा करने की कोशिश कर रही हूं। मैंने तो उसे तेरह हजार ही बोल रखे हैं शायद मान जाए।”
“हाँ , ठीक है, तेरह हजार में ही ठीक रहेगा, मकान मालिक इतनी में ही देने को तैयार भी हो जाएगा,” मानव ने फिर कहा।
अबकी बार जब गंगा आई तो उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था। मिठाई का डिब्बा गंगा ने मानव की मां को दिया और बोली “अरे मानव की मां, मैंने तेरह हजार में वह मकान खरीद लिया है। जैसा मानव ने बताया था, उस मकान के चारों कोनों में चार ताबीज और दबे पड़े थे, जिन्हें मैंने निकलवा लिया। शायद उन ताबीजों के प्रभाव से ही वह मकान उस मकान मालिक को फल नहीं रहा था। इसीलिए उसने वह मकान मुझे तेरह हजार में ही देने का मन बना लिया था। लेकिन शायद भगवान ने मानव के द्वारा ही मेरी सहायता करनी थी, इसीलिए मकान खरीदने से पहले भगवान ने मानव के मुख से मेरी सहायता करी और मैंने उस मकान को खरीद लिया। ये मिठाई का डिब्बा उस मकान को खरीदने के लिए ही मुंह मीठा करने के लिए दिया है।” मां ने उस डिब्बे को सिर माथे पर तो लगा लिया, लेकिन उसका मन तो कहीं और ही लगा हुआ था।
उधर मानव कमरे में बैठा उन दोनों की बातें सुन, सोच रहा था कि ये सब कैसे हुआ, क्या वाकई उसकी बताई हुई बातें सच हुई और आज गंगा उस मकान को खरीदने में कामयाब हुई। तभी मानव को लगा कि उस से कोई कह रहा है कि गंगा को बता दो कि ये मकान चार महीने के बाद उससे कोई खरीदने के लिए आएगा तो वह उसे तुरंत बेच दे। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है, फिर भी उसने गंगा को बताना उचित समझा और कमरे के अंदर से ही मां को संबोधित करते हुए बोला “मां, गंगा को बोल दो कि ये मकान चार महीने तक अपने पास रखे और फिर इसे बेच दे। बहुत लाभ में रहेगी।”
गंगा ने उस मकान को मानव के कहे अनुसार चार महीने तक अपने पास रखा। एक दिन एक व्यक्ति गंगा के पास आया और उससे मकान खरीदने के लिए पूछने लगा। गंगा ने उसे अगले दिन आने के लिए कहा और मानव के घर चल दी।
मानव उस दिन अपने घर पर नहीं था। अपनी मां के साथ शायद किसी रिश्तेदारी में गया हुआ था। गंगा को निराशा हुई कि वह तो एक खुशी की खबर सुनाने भागी-भागी मानव के घर आई थी, पर वहां से उसे निराशा मिली।
गंगा चली गई।
अगले दिन वह फिर खुशियों की बात सुनाने मानव के घर पहुंची। सामने मां खड़ी थी। मां को गंगा कुछ बताना ही चाह रही थी कि मां ने कहना शुरू कर दिया, “मानव के बड़े भाई परेश ने एक तांत्रिक से बात कर रखी थी। उसी के कहने पर कल मानव को लेकर उसके पास गई थी। मानव को देखते ही न जाने उस तांत्रिक को क्या हुआ कि उसने मानव को हाथ जोड़कर नमस्ते की। फिर तांत्रिक ने मानव को बाहर जाने को कहा। मैं भी बहुत डर गई थी कि आखिर इस तांत्रिक ने मानव में क्या देखा कि इसने खड़े होकर मानव को नमस्ते की। फिर मुझसे बोला कि मानव के बारे में मैं आपको भी कुछ नहीं बताऊंगा। आखिर उसकी मां हो नं। मैं मानव के बारे में उसके बड़े भाई परेश को सब कुछ बता दूंगा। मेरे लाख कहने पर भी उस तांत्रिक ने मुझे कुछ नहीं बताया। मैं बहुत घबरा रही हूं कि न जाने तांत्रिक परेश को क्या-क्या बताएगा।” कहकर मां ने गंगा से पूछा, “हां तो तू किस काम से आई थी?”
मां की बात सुन गंगा ने मन ही मन सोचा कि जिस खुशी की बात मैं बताने आई थी, उसे बताऊं की नहीं! तभी मानव की मां ने दुबारा उससे पूछा, “क्यों क्या हुआ?”
अब की बार गंगा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला। पर उसे ऐसा लगा कि वह कुछ बोलेगी तो शायद ठीक नहीं होगा। परन्तु मानव की मां के जोर देने पर आखिर गंगा को कहना ही पड़ा, “मुझे भी ऐसा लगता है कि मानव में कोई अद्भुत शक्ति है, तभी तो उसने यहां पर रहते हुए ही मुझे सब कुछ बता दिया और उसी के कहे अनुसार जब मैंने वह मकान चार महीने तक अपने पास रखा तो आज एक खरीददार उस मकान को खरीदने आया था और जानती हो उसने उस मकान की कितनी कीमत लगाई, पूरे अस्सी हजार।”
अब की बार मानव की मां का मुंह खुले का खुला रह गया। गंगा आगे बोलती चली गई, “मानव ने तो यह कीमत चार महीने पहले ही बता दी थी। जब उस व्यक्ति ने मुझे अस्सी हजार कहे तो मैंने उस आदमी को चार दिन बाद आने को कहा, यह कहकर कि मैं पहले एक व्यक्ति से पूछ लूं, फिर बताऊंगी।”
मां अवाक्-सी होकर गंगा की बातें सुन रही थी। गंगा बोल उठी, “मैं पहले भी मिठाई का डिब्बा लाई थी कि यदि मानव कह देगा तो सबसे पहले मैं मिठाई उसे ही खिलाऊंगी। इसीलिए तुम्हारे घर आई थी। खैर, मानव कहां है?”
मानव कहाँ है....
अगले अंक में....