रविवार, 29 मई 2016

हार्दिक धन्यवाद!

                                                               हार्दिक धन्यवाद

रोज की तरह आज भी सूर्य पूर्व से उगा था। रोज की ही तरह आज भी मैं उषाकाल में ही उठा था। अपना गाउन उतार कर एक तरफ भी रोज की ही तरह रखा था। मॉर्निंग वॉक के कपड़े अब मेरे शरीर पर थे। सब कुछ रोज की ही तरह था, लेकिन मन बड़ा अनमना-सा हो रहा था।
एक बार तो लगा जैसे दुबारा कम्बल ओढ़ कर सो जाऊं, लेकिन अगर एक बार क्रम टूटा तो फिर टूटता ही चला जायेगा, सो कमरे से बाहर निकल आया।  हाथ-मुंह धो कर अपनी कोठी से बाहर निकल आया, सामने वाले पार्क में घूमने जाने के लिए।

कोठी से बाहर निकला ही था कि सामने दीवार पर लगे पोस्टर से निगाह मिलते ही पैर एकदम ठिठक गए। पोस्टर पर एक जाना-पहचाना चेहरा चिपका हुआ था। सवेरे-सवेरे दिमाग पर जोर डालने का मन न हुआ, सोचा बाद में सोचेंगे कि यह चेहरा किसका है? फिर सोचा, कहीं ऐसे दिमाग में टेंशन रख कर मॉर्निंग वाक की जा सकती है? सो, पहले देख लिया जाये कि यह जाना-पहचाना चेहरा है किसका?


पोस्टर के पास पहुंचा! पोस्टर पर ऊपर ही बड़े-बड़े नेताओं की एक कतार से फोटोज लगी हुई थी। फोटोज के नीचे उनके नाम और पद। श्री फलां जी, श्री फलां जी, श्री... और नीचे वे क्या-क्या थे, पद के साथ विशेषण। दूसरी लाइन थी - हार्दिक धन्यवाद।  कम से कम डेढ़ हज़ार पॉइंट में तो होगा ही। समझ नहीं आया फोटोज और उनके नीचे नाम और पद तो साठ पॉइंट में और हार्दिक धन्यवाद डेढ़ हज़ार पॉइंट में। अब कोई इस भलेमानस से पूछे कि जिन प्रतिष्ठित व्यक्तियों की ये फोटोज लगी हुईं हैं, क्या वे अपनी कार से उतर कर देखेंगे कि उनका नाम और पद ठीक ढंग से छपे भी हैं या नहीं या कि उनकी फोटो के नीचे किसी और का नाम तो नहीं छाप दिया गया है? खैर, डेढ़ हज़ार पॉइंट के 'हार्दिक धन्यवाद' से नज़र नीचे फिसली तो लगा नज़र फिसलती ही चली जाएगी क्योंकि जिस व्यक्ति की वह फोटो थी, उसका परिचय जब उसकी फोटो के नीचे पढ़ा तो लगा जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक जाएगी। ये साहब तो अभी कुछ दिनों पहले ही थोड़ी-सी आर्थिक सहायता मांगने मेरे पास आए थे।

दिमाग पर जोर देना चाहा।  सोचा, क्या कह कर सहायता मांग रहे थे ? शायद यही तो कह रहे थे कि फलां पार्टी के लिए पार्टी फंड चाहिए। शायद इसी पार्टी के लिए इन्होंने फण्ड माँगा था कि मैं इस पार्टी का ब्लॉक अध्यक्ष बनने जा रहा हूँ, कृपया 'हार्दिक धन्यवाद ' का पोस्टर छपवाने के लिए पार्टी फण्ड चाहिए। मैंने 'फिर आना' कह कर पीछा छुड़वाना चाहा था, लेकिन ये थे कि पीछा छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं थे। आख़िरकार बीस हज़ार का चेक दे कर ही मैं पीछा छुड़ा पाया था। अब समझ आ रहा था कि ये 'पार्टी फण्ड' का पैसा किस काम में लगाया गया था ?

अब मेरे दिमाग में एक नई बात ने उथल-पुथल मचानी शुरू कर दी थी। परन्तु इस बात का जवाब यदि मेरे पास होता तो उथल-पुथल मचती ही क्यों ? सो इस बात का जवाब वही दे सकते थे, जिन्होंने यह "हार्दिक धन्यवाद" दिया था।

मैं पार्क के मेन गेट की ओर बढ़ चला।  अंदर मेरे जैसे ही बुजुर्ग अलग-अलग मंडलियों में बैठे थे। कोई मण्डली योग कर रही थी तो कोई आपस में बतिया रही थी।  कुछ बुजुर्ग तेजी-तेजी चल कर जवान बनने की कोशिश में लगे थे। मैं भी कुछ सोच कर अपने आप को जवान बनाने की कोशिश में लग गया।
अभी थोड़ी दूर चले हो होंगे कि उनकी बातों से पता चल गया कि वो भी उसी "हार्दिक धन्यवाद" की बातें कर रहे थे, जिसके बारे में मैं सोच रहा था। उन्हीं की बातों में शामिल होते हुए आख़िरकार मन की उथल-पुथल उनके सामने आ ही गई।

"और तो सारी बात ठीक है, लेकिन ये "हार्दिक धन्यवाद" किसलिए और किसके लिए ? ये "हार्दिक धन्यवाद" तो हमें देना चाहिए, जिन्होंने उन्हें ये पैसा दिया। यह बात कहाँ तक तर्कसंगत है कि पैसा हमारा और "हार्दिक धन्यवाद" किसी ओर को दिया जा रहा है।" मेरी इस बात से सहमत होते हुए मेरे पडोसी मि. कोल बोले, "जी हाँ, कौशिक जी, बात तो आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, लेकिन इसका जवाब तो वे ही सज्जन दे सकते हैं, जिन्होंने उनका "हार्दिक धन्यवाद" दिया है।" उनकी बात से लग रहा था कि वे भी शायद इसी बात का उत्तर जानना चाहते हैं। शायद उनके पास से भी पार्टी फण्ड लिया जा चुका था।

हफ्ता गुजर गया और एक दिन शाम को अचानक ही "हार्दिक धन्यवाद" "मिस्टर फलां" से मुलाकात हो गयी। अपनी स्विफ्ट में उन्हें बैठा कर घर ले आया।  "मिस्टर फलां" से मुलाकात होते ही उसी बात ने दिमाग में कुलबुलाना शुरू कर दिया था।

कोठी पर पहुँच कर नौकर को चाय लाने का आर्डर दिया। "मिस्टर फलां" को बैठने का इशारा कर कपड़े बदलने दूसरे कमरे में चल दिया। कपड़े बदलते हुए सोच रहा था कि पहले तो बीस हज़ार ये ठग ले गया था,
परन्तु अब इसे एक रुपया भी नहीं दूंगा।

"और सुनाइए मिस्टर फलां! कैसे मिजाज हैं आपके?"
"बस आपका आशीर्वाद है।  देखिये, आपके आशीर्वाद से ही आज मैं फलां पार्टी का ब्लॉक अध्यक्ष बन गया हूँ। शहर में आपने पोस्टर तो देख ही लिए होंगे।"

मुझे लगा कि उसने मेरे जले पर नमक छिड़क दिया है। मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "लेकिन ये कहाँ की इंसानियत है कि पैसा हम लोगों ने दिया और धन्यवाद आपने न जाने किस-किस का किया है।  धन्यवाद तो उनके साथ आपने हमारा भी करना चाहिए था न! और हाँ, ये धन्यवाद किसलिए ? आप तो हमें कोई ऐसे तीरंदाज़ भी नहीं दिखते। अभी पिछले कुछ समय तक तो रबड़ की चप्पलें चटखाते फिरते थे। फिर अब ये … !"
उनके चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि अब ये कोई राज़ खोलने जा रहे हैं।

"बात ये है कौशिक जी कि जब मैं चप्पलें चटखाता फिरता था, तब आपके पड़ोसी मिस्टर कौल मुझसे बार-बार कहते थे कि चप्पलें चटखाता फिरता है, कुछ काम क्यों नहीं करता ? मेरे पास कुछ करने को था नहीं! ऐसे में एक दिन उन्होंने ही एक पत्र देकर अपने ही ब्लॉक के अपनी इसी पार्टी के मंत्री के पास भेजा था। उन मंत्री ने वह पत्र लेकर एक तरफ रख दिया और एक बहुत ही जरूरी पत्र मेरे हाथ में देकर बोले कि जितनी जल्द से जल्द हो सके, ये पत्र फलां जगह पर पहुंचा दो। साथ में उन्होंने मुझे एक पांच सौ का नोट देकर कहा था, "थ्री व्हीलर पर आना-जाना, बाकी तुम रख लेना। "

"बस, वह दिन था और आज का दिन है।  फिर तो मैं उन मंत्री जी से ऐसा मिला कि मेरे दिन फिरते ही चले गए। बड़े-बड़े लोग जो उन्हें गिफ्ट देते थे, वो मुझे पकड़ा देते थे और फिर उन्होंने कहा कि मैं उनकी पार्टी के लिए ही काम क्यों नहीं करता ?"

"वह तो ठीक है, लेकिन ये हार्दिक धन्यवाद ?"
"बात ये है कि ये हार्दिक धन्यवाद मैंने ब्लॉक अध्यक्ष बनने पर नहीं दिया है। ये "हार्दिक धन्यवाद" तो मैंने इसलिए दिया है कि आज के लाखों बेरोजगारों को पीछे छोड़ते हुए मैं रोजगाररत हो गया हूँ और वह भी ऐसा कि चारों तरफ धाक ही धाक ! यह "हार्दिक धन्यवाद" तो इसलिए दिया गया है कि आज से कुछ समय पहले तक जब मैं रोजगार की तलाश में चप्पलें चटखाता इधर-उधर घूमता था, तब कोई पूछता नहीं था और आज वे ही अपना काम करवाने के लिए सुबह-शाम हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। अब बताइए "हार्दिक धन्यवाद" उनका करूं या आपका ? उनको हार्दिक धन्यवाद दिया तभी तो अब यहाँ आपके साथ बैठा आपकी चाय पी रहा हूँ और ये उसी "हार्दिक धन्यवाद" का ही तो कमाल है कि कल तक चप्पलें चटखाने वाले को आपने अपनी स्विफ्ट रोक कर यहाँ तक लिफ्ट दी। "

अब चौकने की बारी मेरी थी।

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