बुधवार, 24 दिसंबर 2025

wohmainnahin part VIII

 वहां कुछ न था...

घर वह जा नहीं सकता था...

कोई दूसरा उसे दिखाई नहीं दे रहा था... क्या करे वह...कहां जाए...

उसे लगा कि उसके सिर के हजारों टुकड़े हो जाएंगे। वह भाग जायेगा। अपने दोस्त को छोड़कर भाग जाएगा... उसको जिसके लिए वह थोड़ी देर पहले ही तो देवता का दर्जा दे रहा था।

तो फिर वह क्या करे... दवा लाने के लिए उसके पास पैसे नहीं! दोस्त की तड़फन उससे देखी जाती नहीं!

वह कुछ सोच केमिस्ट की दुकान की तरफ बढ़ चला। केमिस्ट को उसने डॉक्टर साहब का पर्चा थमा दिया। केमिस्ट ने दवाइयां निकाल उसका पर्चा बना मानव के हाथ में थमा दिया।

मानव ने देखा दवाइयां तीन सौ तीस रुपए की थीं। मानव के पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी।

मानव ने पर्ची देख केमिस्ट को कुछ समझाना चाहा। मानव ने हाथ जोड़कर केमिस्ट से वे दवाइयां उधार लेनी चाहीं, लेकिन केमिस्ट ने उसके जुड़े हाथों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और अपने लड़के से दवाइयां रखने के लिए कहा।

मानव ने दुबारा हाथ जोड़कर अपने दोस्त की जिंदगी की भीख मांगी। केमिस्ट से प्रार्थना की और यह भी विश्वास दिलाने की कोशिश की कि पैसे उसके घरवाले आएंगे, वह उनसे तुरंत पैसे लेकर दे जाएगा। केमिस्ट ने उसे झिड़क कर भगा दिया।

मानव अपना-सा मुंह लेकर खड़ा रह गया। उसका दिमाग कुछ काम नहीं कर रहा था। भरे मन से वह अस्पताल के आई.सी.यू. विभाग की ओर बढ़ने लगा। उसे पता लग चुका था कि उसका दोस्त बचेगा नहीं।

वह आई.सी.यू. के दरवाजे पर खड़ा था, तभी उसके दोस्त ने उसे बुलाया। कागज और पैन मांगा। मानव भागा हुआ उस जगह पहुंचा, जहां नर्सें बैठी हुई थीं। दो कदम  भागने में ही वह जैसे हांफने लगा था, उसे लगा था कि कहीं उसके ये दो कदम उसके दोस्त की जिंदगी पर भारी न पड़ जाएं।

वहां काउंटर पर रखे कागजों का पैड और नर्स के हाथ में लहराते पैन को उसने लगभग छीन-सा लिया था।

पैन और कागज ले वह अपने दोस्त के पास आया। मानव ने देखा कि उसका दोस्त कुछ बोलना तो चाह रहा है लेकिन बोल नहीं पा रहा है। उसने कागज और पैन उसके बैड के पास रखा और नर्स को बुलाने के लिए फिर नर्स काउंटर के पास दौड़ा और नर्स को ढूंढने लगा, जो वहां नहीं थी।

मानव की समझ में नहीं आ रहा था कि वह यहीं खड़ा रहे या अपने दोस्त की तरफ लौट जाए। उसने मन ही मन सोचा कि दो मिनट इंतजार करने के बाद वह अपने दोस्त की तरफ लौट जाएगा। दो मिनट तो क्या पांच मिनट तक नर्स वहां नहीं आई थी। मानव अपने दोस्त की तरफ उल्टे पांव लौट गया।

लेकिन ये क्या!

मानव जो पैन और कागज अपने दोस्त को देकर आया था, उसका उसके दोस्त ने सदुपयोग करते हुए अपनी मां के नाम के साथ-साथ अपना पता भी लिख इस दुनिया को अलविदा कह चुका था।

मानव ने वह पता लिखा पर्चा अपनी जेब में रख आई.सी.यू. से चुपचाप बाहर आ गया था। अस्पताल से बाहर साइकिल स्टैंड से उसने अपनी साइकिल उठाई और कागज पर लिखे पते की ओर दौड़ चला।

उसके पैरों में पंख लग चुके थे।

मानव को लग रहा था कि उसे गलतफहमी हुई है कि उसका दोस्त इस दुनिया को अलविदा कह चुका है। साइकिल चलाते हुए उसे महसूस हो रहा था कि वह उसकी मां को लेकर जैसे ही अस्पताल पहुंचेगा, डॉक्टर उसे खुशी से लबरेज कर देंगे कि तुम्हारा दोस्त तो केवल एक्टिंग कर रहा था, उसे कुछ नहीं हुआ है। देखो, वह बिल्कुल ठीक-ठाक सामने बैठा है, अब तुम उसे ले जा सकते हो।

और अगर ऐसा न हुआ तो... वह अपने दोस्त के बिना जिंदा कैसे रह पाएगा।

और भी...न जाने कैसे-कैसे ख्याल उसके दिमाग को मथ रहे थे।

थोड़ी ही देर और लगी थी, उसको अपने दोस्त का घर ढूंढने में।

अब वह अपने दोस्त की मां को समझा बुझाकर साइकिल पर वापस लौट रहा था। उस दोस्त की मां साइकिल के कैरियर पर बैठी मानव से कुछ कह रही थी और मानव था कि उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था, वह तो जल्द से जल्द अपने दोस्त के पास पहुँच जाना चाहता था। तभी तो साइकिल चलाते हुए उसे न तो भूख का अहसास था, न प्यास का | 

थोड़ी सी मशक्कत के बाद मानव अपने दोस्त की मां को लेकर अस्पताल के आई.सी.यू. वार्ड के दरवाजे पर खड़ा नर्स को बता रहा था कि वह उसकी मां को उसके घर से ले आया है। मानव ने देखा कि उस नर्स की आंखों में आंसू हैं और वह एक रास्ते की ओर इशारा कर रही है।

मानव के पूछने पर नर्स ने बताया कि जब वह उसकी मां को लेने के लिए चल दिया था, उसके बाद उसके मुँह दसे खून की उल्टी हुई थी | फिर भी डॉक्टर जितना कर सकते थे, उतना किया, लेकिन उसे बचा नहीं सके | 

नर्स का कहना था कि उसका दोस्त बच तो जाता यदि उसकी पसलियों में आई गुम चोट का पता चल जाता और भी न जाने नर्स क्या-क्या बताती रही, लेकिन मानव अपने दोस्त की मां का हाथ पकड़ कर उस तरफ चल दिया था, जिधर उस नर्स ने रास्ता दिखाया था | वह रास्ता सीधे मॉर्चरी (लावारिस लाशों को रखने की जगह) पर जाकर खत्म होता था | 

मानव अपने दोस्त की माँ का हाथ पकड़कर उस ओर चले जा रहा था, जहाँ उसके दोस्त की लाश रखी हुई थी। अपने बेटे की लाश को देख मां के दिल पर क्या गुजरेगी? सोचते-सोचते मानव मोर्चरी के दरवाजे तक पहुँच गया था। वहाँ उसने अटेंडेंट से बात की। अटेंडेंट उसे एक कोने में ले गया। वहाँ एक लाश चादर में लिपटी जमीन पर रखी हुई थी। मानव अपने साथ-साथ अपने दोस्त की माँ को भी वहीं ले आया था।

अटेंडेंट ने लाश के चेहरे पर से कपड़ा हटाया। जैसे ही कपड़ा हटा, मानव के दोस्त की माँ गिरते-गिरते बची। यदि अटेंडेंट और मानव ने उस माँ को नहीं संभाला होता, तो वह लगभग बेहोश होकर गिर ही पड़ती।

माँ का गला न तो भर्राया और न ही आँखों में आँसू आए।  माँ लगभग शून्यविवेक हो गई थी।

उसने मानव को एक कोने में बुलाया।  

फिर उस माँ ने जो कहा, उस पर तो एक बार मानव को भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।

उस दोस्त की मां ने मानव को अपने दोस्त की लाश को लावारिस बता देने के लिए कहा | मानव ने जब अपने दोस्त की मां से इसका कारण जानना चाहा तो दोस्त की मां ने बताया कि उनके घर में इतने भी पैसे नहीं हैं कि वह अपने बेटे का क्रियाकर्म भी ठीक ढंग से नहीं कर सकती | सुन मानव एकदम सकते में आ गया |

क्या उसके दोस्त का अंतिम संस्कार भी सही ढंग से नहीं हो पायेगा? उसे लगा शायद उसकी एक बात से उसके दोस्त की मां का दिल पसीज जाये, सोच कर मानव ने अपने दोस्त की मां से पूछा कि अगर पास-पड़ोस या नाते-रिश्तेदार जब उनके घर आएं तो क्यों न उनसे थोड़ी-सी सहायता ले ली जाये | 

बात सुनते ही दोस्त की मां के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी | दोस्त की मां ने मानव को बताया कि वह अपने दोस्त की लाश को यहाँ से सीधे श्मशान घाट ले जाये और क्रियाकर्म करवाए | 

मानव को यह मकड़जाल कुछ समझ नहीं आ रहा था।

मानव के चेहरे पर उड़ती हवाइयों को देख दोस्त की मां ने कहा कि पहले हम इस काम को कर लें फिर उसके बाद किसी दिन इस पहेली को सुलझाएगी।

आखिरकार मानव को अपने दोस्त की मां की बात को मानना पड़ा। मानव ने अटेंडेंट से बात की और रियायती दरों पर एम्बुलेंस का इंतजाम हो गया। वह अकेला ही था अपने दोस्त की अन्त्येष्टि करवाने में।

अन्त्येष्टि करवाने के बाद वह सीधा अपने घर चला गया। रह-रह कर उसे अपने दोस्त की याद आ रही थी। क्या यही जिंदगी की रीत है।

मानव को सही राह दिखा खुद दुनिया के पर्दे से विदा हो गया। मानव जितना इस बारे में सोचता, उतना ही ज्यादा परेशान हो जाता था।

वह जितना इस बात को, कि उसका दोस्त नहीं रहा, दिमाग से निकालना चाहता था उतनी ही यह बात उसके दिमाग को मथती रहती थी।

एक दिन दिलासा देने के उद्देश्य से मानव, कर्मेश की मां के पास पहुंच गया और आग्रह करने लगा कि वह उस राज को बताएं जो उन्होंने सबसे छुपाकर रखा था। क्यों नहीं मानव के इस दोस्त की अन्त्येष्टि में कोई नाते रिश्तेदार या पास-पड़ोस के लोग आए।

फिर इस दोस्त की मां ने जो बताया, वह मानव के लिए दुनिया के किसी आश्चर्य से कम नहीं था।  

मानव के इस दोस्त के पिता एक उच्च मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे।  

मानव के इस दोस्त का परिवार साधारण-सी कॉलोनी में रहता था। इस कॉलोनी का नाम था *प्रीत विहार*।

सड़क पार एक पॉश कॉलोनी थी। उसी कॉलोनी की एक कोठी में मैं (कर्मेश की मां) अपने पागल भाई के साथ रहती थी। हमारे पापा (कर्मेश के नाना) हमें छोड़कर चले गए थे। तब मैं बहुत छोटी थी। मेरा भाई मुझसे पाँच साल छोटा था।

हमारी माँ ने बहुत मुश्किलों से मुझे और मेरे भाई को पाला। माँ ने हमें दुनिया की सारी खुशियाँ दीं, पर उन पागल कुत्तों की तरफ़ जो मेरी जवानी की तरफ़ आकर्षित हो रहे थे, कभी ध्यान नहीं दिया। ध्यान था तो केवल अपनी माँ और पागल भाई पर। अपने भाई को अपने आँचल में समेटे दुनिया के थपेड़े खाती हुई मैं बड़ी हो रही थी।

ऐसे में तुम्हारे दोस्त के ये पिता, जो मुझे उस कोठी में अपने भाई के साथ आते-जाते देखते थे, एक दिन मेरा पीछा करते हुए मेरे घर तक जा पहुँचे।

मेरा घर क्या, एक झोपड़ी थी जो एक कच्ची कॉलोनी में मेरी माँ ने कुछ लोगों की सहायता से डाली हुई थी।

मैं पीछा करते हुए तुम्हारे इस दोस्त के पिता को देख नहीं सकी। अब तो उन्होंने उस कॉलोनी में मेरे बारे में पूछना शुरू किया और जब संतुष्ट हो गए तो एक दिन घर लौटती मुझे और मेरे भाई को रोक लिया। उनके मुँह से एकदम शादी का प्रस्ताव निकला।

मुझे बहुत गुस्सा आया, ये भी कोई जगह है? मैं चुपचाप कन्नी काटकर एक और ओर से निकल गई।

अगले दिन मैं अपने भाई को लेकर काम के लिए निकल ही रही थी कि सामने तुम्हारे दोस्त के पापा खड़े थे। चेहरों पर स्वाभाविक हँसी ने उनको बहुत ही खूबसूरत बना दिया था। शादी की बात इस झोपड़ी में कैसी रहेगी, कहते-कहते उन्होंने मेरी माँ के कदमों की तरफ़ हाथ बढ़ा दिए।

उनकी इस अदा ने मेरी नजरों में उनके कद को और ऊँचा कर दिया था। हम फिर झोपड़ी का  दरवाजा  खोल अंदर घुस गए |  उस समय मैं सोलह साल की थी। तुम्हारे दोस्त के पापा ज्यादा से ज्यादा बीस साल के रहे होंगे।

उन्होंने मेरी माँ के सामने मुझसे शादी का प्रस्ताव रखा।  मेरी मां ने उन्हें बहुत समझाया | समाज की दुहाई भी दीं, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए |  तब कर्मेश के पिता ने कहा कि यदि मेरे घर वाले भी मेरी इस शादी के खिलाफ़ होंगे, तब भी वे शादी मुझसे ही करेंगे। साधारण-सी लड़की के किस गुण पर वे इतना मर-मिटे थे कि मैं खुद नहीं समझ पा रही थी। एक बार तो मैंने भी हिम्मत कर कर्मेश के पिता को मना कर दिया था कि मैं तुमसे शादी नहीं करूँगी। परन्तु उनकी तो जिद थी।

मेरी मां तुम्हारे दोस्त के पिता के घर उनके मां-बाप से मिलने गई|  पहले तो उनकी बड़ी आवभगत की गई, परन्तु जब उन्होंने शादी की बात की तो कर्मेश के पिता के माँ-बाप की आवाज़ बदल गई और आवभगत की जगह धक्कों ने ले ली।

इस बात का पता जब कर्मेश के पिता को लगा तो उन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे मुझे और मेरी मां के साथ मेरे भाई को भी साथ लिया और मोहल्ले के मंदिर में ले गए। लग रहा था कि कर्मेश के पिता को सब कुछ बातों की जानकारी पहले से ही थी, तभी तो मंदिर में उन्होंने पुजारी से बात कर उसके पास दो मालाएँ पहले से ही लाकर रख दी थीं। वहाँ हम तीनों को ले जाकर उन्होंने पुजारी से पूजा की थाली और वो दोनों मालाएँ भी मँगवा लीं।

पुजारी जी ने मंत्र पढ़ा और उन्होंने मेरे गले में माला पहना दी। तब पुजारी ने एक मंत्र और पढ़ा और मुझसे उनके गले में माला पहनाने के लिए कहा। मैंने काँपते हाथों से कर्मेश के पिता के गले में माला पहना दी।

ऐसी भी कोई शादी होती है?

तब उन्होंने मेरी माँग में सिंदूर भर दिया और मेरा हाथ पकड़कर मेरी माँ की तरफ़ हो लिए। मेरी माँ के कदमों की तरफ़ हाथ बढ़ाते ही मेरी रुलाई फूट पड़ी। तब उन्होंने जो कहा, उसे सुनकर मेरे दिल में उनकी इज्ज़त और बढ़ गई। वे मेरी माँ और मेरे भाई को भी अपने साथ रखने के लिए तैयार थे।

परन्तु आज...! आज तो उनके पास अपने लिए भी रहने का ठिकाना न था, सो आज उन्होंने अपनी “ससुराल” यानी हमारी झोपड़ी में ही रात गुजारने की सोची। कर्मेश की माँ के चेहरे पर थोड़ी-सी ऐसी मुस्कुराहट फैल आई थी जैसे कि सालों पहले किसी घटना को याद कर फैल जाती है | 

इसके बाद मानव का क्या होगा ?.... 

पढ़िए अगले अंक में ....

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