शुक्रवार, 26 दिसंबर 2025

WOHMAINNAHIN PART XII

 नहीं, मैं तुम्हें नहीं देख रहा था।

फिर झूठ!

चलो फिर, बताता हूँ | अगर तुम यहीं पर पटरी पर बैठने का फैसला लेते हो तो  ये मत सोचना कि उसके बाद तुम्हारी सभी समस्याओं का हल हो जायेगा | असली समस्याएं तो उसी के बाद शुरू होंगी और वह तब तक रहेंगी, जब तक कि वह समय नहीं आ जाता, जब तक तुम्हें दुनिया में रहने का समय था।  

मतलब...  

मतलब क्या? इतनी छोटी-सी बात भी समझ नहीं आ रही? तुम्हारी "मुक्ति"  चाहे वह इंसान के रूप में हो या फिर भूत-प्रेत योनि में। जो समय मौत के देवता ने तुम्हारे लिए निर्धारित किया है, उससे पहले तुम यह दुनिया नहीं छोड़ पाओगे।  

समझे!

और एक बात...  

यदि तुम एक बार इस दुनिया को छोड़ हमारी दुनिया में आ जाओगे तो यहाँ की एक बात और तुम्हें बता दूँ। यह मत सोचना कि मैं तुम्हें डरा रहा हूँ, बल्कि एक हकीकत बयान कर रहा हूँ। जैसे तुम इंसानों की दुनिया होती है, वैसे ही इन भूत-प्रेतों की भी दुनिया होती है। जैसे तुम्हारी दुनिया में अच्छे और बुरे व्यक्तियों की श्रेणी होती है, वैसे ही हमारी इस दुनिया में अच्छे और बुरे भूत-प्रेत भी होते हैं।  

हमारी दुनिया में जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, हम भी बूढ़े होते हैं, हमारा भी स्थान बदलता जाता है। पहले मशान, फिर भूत, फिर प्रेत, फिर पिशाच, फिर नर पिशाच, फिर ब्रह्म राक्षस, जो हमारी इस दुनिया का "हेड" होता है। वह एक तरह से हमारी दुनिया का प्रधानमंत्री होता है। बस फर्क इतना ही होता है कि तुम्हारी दुनिया झूठ-फरेब और रिश्वत से भरी होती है और हमारी इस दुनिया में ये सब कुछ नहीं चलता। इसीलिए हमारी दुनिया में तुम्हारी दुनिया से कुछ भी लाने की इजाजत नहीं है, नहीं तो हमारी इस दुनिया को भी लोग "अपनी दुनिया" की तरह "गंदा"  कर देंगे।

अब मेरी सोचने की बारी थी। वैसे मैं तुमसे एक बात और पूछना चाहता हूँ।  

पूछो...

लोग तो भूत-प्रेतों के नाम से ही डरते हैं।  

हाँ-डरते हैं, लेकिन डरना नहीं चाहिए।  

क्यों?  

क्योंकि हर भूत-प्रेत एक जैसे नहीं होते।  

जैसे...  जो इंसान अपनी जिंदगी में हमेशा विचलित रहता है और इसी विचलन के कारण जब वह अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता है, तब वह हमारी 'दुनिया' में आ जाता है। जब उसे अपनी दुनिया में ही चैन नहीं मिला तो यहाँ कैसे मिलता।  इसलिए यहाँ पर भी वह खुराफातें करने से बाज नहीं आते। कुछ ऐसे भी इंसान होते हैं, जो किसी हादसे का शिकार होकर हमारी इस दुनिया में आ जाते हैं। वे इंसान की योनि में भी शांति के साथ जीवन बिता रहे होते हैं तो यहाँ पर भी वह शांति के साथ जीवन बिता रहे होते हैं तो यहाँ पर भी वह शांति के साथ तब तक समय बिता देते हैं, जब तक उन्हें 'मुक्ति' नहीं मिल जाती। वे हमेशा 'सहायता' करने के लिए तैयार रहते हैं। कुछ मेरे जैसे भी होते हैं, जो इस योनि से छुटकारा पाने के लिए 'अच्छे कर्मों' का सहारा लेते हैं और जल्द से जल्द इस योनि से छुटकारा पा जाते हैं। तुम एक पवित्र आत्मा हो, 'मैं' तुम्हारे साथ रहकर तुम्हारी सहायता करूँगा और अपनी इस योनि से जल्द से जल्द छुटकारा भी पा लूँगा। कहो, क्या तुम मेरी सहायता करोगे?"

लेकिन मैं तुम्हारी सहायता कैसे कर सकता हूँ क्योंकि न तो तुम दिखाई देते हो और फिर मैं तुम्हें छू भी तो नहीं सकता और फिर तुम मुझसे किस प्रकार की सहायता चाहते हो?

वैसे एक बात बताओ!  

पूछो।  

तुम यहाँ किसलिए आए थे? अपने अकेलेपन से घबराकर न...  

हाँ तो फिर।  

मैं तुम्हारा ये अकेलापन दूर करूँगा, तुम्हारे साथ रहकर।  

बस तुम डरना नहीं।  

जब तुम दिखोगे नहीं तो मेरा अकेलापन दूर कैसे हो जाएगा?  

वो तुम मुझ पर छोड़ो।  

लेकिन जब तक तुम बताओगे नहीं, मैं कैसे कह सकता हूँ कि तुम मेरे साथ रहो या नहीं।  

मैंने कहा न ये सब मुझ पर छोड़ो।  

तो फिर बात पक्की रही। अब तुम घर जाओ।  

लेकिन मैं तो अपने घर से इतनी दूर निकल आया हूँ तुमसे बात करते-करते कि अब मुझे घर पहुँचने में तीन-चार घंटे लग जाएँगे और फिर अब रात के बारह बज रहे हैं।  

तो चलो हम तुम्हें पाँच मिनट में तुम्हारे घर पहुँचा देते हैं। अपनी आँखें बंद करो, हिलना मत और इस बात का भी ध्यान रखना कि आज के बाद 'मैं' तुम्हारे साथ ही रहूँगा और तुम्हें केवल उस समय ही छोड़ा करूँगा, जब अपने 'काम' से  मुझे जाना होगा।  

मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था। आखिर कौन था यह, क्यों मेरे पीछे लगा हुआ था। मैंने आँखें बंद कर लीं। मुझे कुछ भी अहसास नहीं था। 

अहसास तब हुआ, जब मेरे कानों में आवाज गूँजी—आँखें खोलो।  

जब मैंने आँखें खोलीं तो मैं अपनी माँ के पास खड़ा हुआ था। सोते हुए मेरी माँ कितनी अच्छी लग रही थी। मैं उसे देखकर मुस्कुराने लगा। मुझे दिल के किसी कोने में लगा—देखा मैं कितनी बड़ी गलती करने जा रहा था, तभी कानों में फिर आवाज आई—अच्छा, अब तुम सो जाओ, सवेरे मुलाकात होगी और मैं अपनी चारपाई की तरफ बढ़ गया।  

नींद किसे आनी थी। सारी रात इसी उधेड़बुन में गुजर गई कि ये सब हो क्या रहा है।  

(अब 'मैं' चाहता हूँ कि इस 'मैं' को कोई नाम दे दूँ, जिससे आगे की पुस्तक को पढ़ने में कोई कठिनाई न आए। चलो इस 'मैं' को 'धर्मेश' नाम दे देते हैं।)

तो फिर, सवेरा हुआ।  धर्मेश अपने कहे अनुसार आया और अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। धर्मेश ने मेरे कान के पास आकर बताया कि अभी दस मिनट बाद पड़ोस में रहने वाले जैन साहब तुम्हें बुलाने वाले हैं।  

पूछा—किसलिए?  

जवाब मिला—काम-धंधे के सिलसिले में।  

और फिर वही हुआ।  

मिसेज जैन ने मेरी माँ को बुलाकर पूछा कि मैं आजकल क्या कर रहा हूँ।  

माँ ने जब उन्हें ये बताया कि मैं सारा दिन आवारागर्दी करके समय बिता रहा  हूँ तो मिसेज जैन ने माँ को मुझे जैन साहब के पास भेजने के लिए कहा। माँ जैन साहब के घर से लौट आई। लौटते ही मुझे जैन साहब से मिलने के लिए कहा।

सर्दियों के दिन थे | जैन साहब बाहर बरामदे में कुर्सी डालकर धूप सेंक रहे थे, जब मैं उनके पास पहुँचा। मुझे देखते ही प्यार से बुलाया और पूछा कि आजकल मैं क्या कर रहा हूँ।  

मुझे अपने दोस्त “धर्मेश” की भी उपस्थिति का अहसास था और इस बात का मुझे डर भी था कि कहीं मैं झूठ न बोल दूँ। अतः मैंने जैन साहब से कह दिया कि मैं आजकल कुछ नहीं कर रहा हूँ।

जैन साहब ने कहा, “अगर तुम आजकल कुछ नहीं कर रहे हो तो शहर की एक पॉश कॉलोनी में समाचार पत्र का एक दफ्तर है, जहाँ मैं जाऊँ और सुबह से शाम तक उस समाचार पत्र के मैनेजर के कमरे की ड्यूटी बजाऊँ।”

धर्मेश ने बताया कि वहाँ से मुझे कुछ भी पैसा नहीं मिलेगा चाहूँ तो पूछ लूँ।  

अब मेरे दिल में चाहत हुई कि इसी बहाने धर्मेश की बातों का भी पता चल जाएगा, अतः मैंने जैन साहब से पूछ ही लिया कि मुझे वहाँ से क्या मिलेगा।

जैन साहब ने उत्तर देने की बजाय उल्टे मुझसे पूछा कि मैं आवारागर्दी करके कितना कमा लेता हूँ? 

अब मेरे कानों में धर्मेश के हँसने की आवाज़ आने लगी। आवाज़ ऐसे थी जैसे कह रही हो—चले थे मेरा इम्तिहान लेने।  

जैसे ही जैन साहब मुझे आज्ञा देकर चले गए, वैसे ही मैंने धर्मेश से पूछ लिया कि क्या मेरा वहाँ जाना ठीक रहेगा?

धर्मेश ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और फिर कुछ देर बाद बोला, “हाँ, तुम्हारा जाना ठीक रहेगा।”

अगले ही दिन से मैं उस प्रसिद्ध समाचार पत्र के मैनेजर के कमरे पर ड्यूटी बजाने लगा। ड्यूटी क्या थी, बस, उनको आते-जाते हुए “सैल्यूट” मारना था।

महीना खत्म हुआ। फिर एक दिन मिसेज जैन ने मेरी माँ को बुलाया। माँ के मन में शंका उठी कि कहीं मेरे बेटे ने कुछ उल्टा-सीधा तो नहीं कर दिया।

लेकिन नहीं...  उनके बेटे ने कुछ उल्टा-सीधा नहीं किया था।  तभी तो... मिसेज जैन ने मेरी माँ के हाथों में साठ  रुपये पकड़ा दिए।  

माँ ने प्रश्नसूचक निगाह से देखा तो मिसेज जैन कोतो वह बोलीं कि तेरे बेटे की मेहनत की पहली कमाई है और मिसेज़ जैन बताने लगीं कि कैसे उनके पति अपने दोस्त उस समाचार पत्र के मैनेजर के पास गए थे। बस वहीँ पर मैनेजर साहब ने अपने किसी दूसरे चपरासी के हाथों ये पैसे मँगवाए और जैन साहब को दे दिए थे। जैन साहब ने आज सुबह जाते हुए ये पैसे तुम्हें देने के लिए कहा था, सो मैंने तुम्हें बुलवा कर ये तुम्हारे हवाले कर दिए। अब भगवान ने चाहा तो सब कुछ ठीक हो जाएगा।

अब मानव को वहाँ काम करते ढ़ाई महीने बीत चुके थे कि एक दिन मैनेजर साहब ने उसे बुलाया और अपने पी.ए. से मिलने के लिए कहा। मानव जब पी.ए. के पास पहुँचा तो पी.ए. ने उसे एक फॉर्म के ऊपर दस्तखत करने के लिए कहा। मानव ने जब पूछा तो पता चला कि उसकी पढ़ाई की योग्यता को देखते हुए उसे ऑफिस की जगह कारखाने में काम सीखना होगा।

अब मानव ने फिर धर्मेश को याद किया। धर्मेश अपने “दूसरे काम” पर गया हुआ था। वह किसी को दूसरी दुनिया में छोड़ने के लिए गया हुआ था।

शाम हुई। मानव धर्मेश को याद करते हुए घर पहुँचा। थोड़ी देर बाद अपना “दूसरा काम” निबटाकर धर्मेश भी मानव के पास पहुँच गया।

मानव ने अपनी समस्या बताई कि अब उसे कारखाने में काम सीखने के बाद वहीं नौकरी करनी होगी, ऑफिस में नहीं।  धर्मेश का जवाब सुनकर मानव चौंक गया।

धर्मेश ने कहा, “तुम क्या चाहते हो?”  

मानव बोला—मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी सहायता करो, जिससे मैं कहीं अच्छी नौकरी पा सकूँ।

धर्मेश ने पूछा, “क्या तुम पुनर्जन्म पर विश्वास करते हो?”  

मानव ने सकारात्मक उत्तर में सिर हिलाया।

धर्मेश ने फिर पूछा, “किस तरह विश्वास करते हो?”  इसका मानव के पास कोई जवाब नहीं था।

धर्मेश ने आगे समझाया:  “कर्म तो इंसान के हाथ में होता है, जबकि भाग्य नाम की कोई चीज नहीं होती। भाग्य, ज्योतिष, हस्तरेखा इत्यादि सब कुछ इस दुनिया में ही होता है, जबकि सच्चाई यह है कि कर्म ही सब कुछ होता है।  प्रत्येक जन्म में मनुष्य को अपने कर्मों का हिसाब करने के लिए पुनर्जन्म लेना पड़ता है। जैसे गाय का बच्चा अपनी माँ के साथ बंधा रहता है, वैसे ही पिछले जन्म के कर्म अगले जन्म में साथ ले जाते हैं। इसीलिए इन कर्मों से छुटकारा पाना इतना आसान नहीं होता।”

“यदि तुम इस जन्म में किसी से धोखाधड़ी करके, झूठ बोलकर या लूटपाट करके उसकी चीजें छीन लेते हो तो यह मत सोचना कि तुमने बहुत बड़ा तीर मार लिया। जो तुमने लूटा या छीना, वह तुम इसी दुनिया में छोड़कर जाओगे, लेकिन उसका हिसाब अगले जन्म में चुकाना पड़ेगा। कारखाने में काम करना तो एक माध्यम है। दरअसल, तुमने अपने पिछले जन्म के कर्मों के कारण जैन साहब से मुलाकात की, जिनके माध्यम से तुम इस समाचार पत्र के मैनेजर से मिले और नौकरी मिली। अब इस नौकरी को स्वीकार कर लो। मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा और तुम्हें ऐसी-ऐसी चीजों से अवगत कराऊँगा, जिन्हें देखकर-सोचकर तुम दंग रह जाओगे।”

मानव के पास धर्मेश के तर्कों का कोई जवाब नहीं था। उसने मन ही मन उस नौकरी को स्वीकार कर लिया। अगली सुबह वह जैन साहब से मिला और उन्होंने मैनेजर साहब से कहकर उसकी नौकरी का इंतजाम करवा दिया।


क्या मानव इस नौकरी पर टिक पायेगा या कारखाने की मुश्किलों का सामने घुटने तक देगा ?....

पढ़िए अगले अंक में ... 


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