शनिवार, 15 जून 2013

चंद सिक्कों के लिए

दिन भर, थक कर ,
रात को, जब सारी दुनिया ,
सोती है, तब मेरा दिन ,
शुरू होता है ।।

ऐसा नहीं कि, मैं सोता नहीं ,
सोता तो जरुर हूँ, लेकिन, 
विचरता हूँ अपनी आत्मा के साथ,
देखता हूँ उन लोगों को, जो, 
दिन भर थक कर, दूसरों की ,
ग़ुलामी कर आये हैं, उन चंद/थोड़े से ,
सिक्कों के लिए, जिनसे वे ,
अपना, अपने परिवार का, पेट,
पालते हैं, और जिन लोगों की ,
वे ग़ुलामी कर चैन की नींद सोये हैं ,
और सुनहरी/रुपहले ख्वाबों में खोये हैं ,
उनकी आखों में नींद कहाँ ?

उनकी नींद त़ो समय ने उड़ा दी ,क्योंकि 
पेट भर कर ही तो ,
आँखों में नींद आती है, और पेट ,
तब भरा करता है, जब उसमें ,
दो रोटी जाती हैं, और शायद यही ,
दो रोटी, उन चंद सिक्के कमाने वालों के ,
नसीब में नहीं ।।      

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