कहा जाता है कि ऋषि भृगु के पास ही वह शक्ति थी, जिससे वह कभी भी कहीं भी जा सकते थे । इसी शक्ति के बल पर ऋषि भृगु पहले ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के पास जा पहुंचे थे, तत्पश्चात कैलाश पर्वत पर भगवन शंकर के पास ! जब दोनों देवताओं के पास वे हताश हो गये, तब वे विष्णुलोक में भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें लात दे मारी ! भगवन विष्णु ने तुरंत उनके पैर पकड़ लिए, तत्पश्चात ऋषिवर ने उन्हें "देवताओं के देवता" की उपाधि से विभूषित किया ! इसका अर्थ है की वेद और उपनिषद भी जिनके गुण गाते हैं, वह कोई ना कोई तो जरुर है, जो ये सब कुछ संभाले हुए है, लेकिन वह है कोन, पर्दे के पीछे कोन बैठा है, जिसको आज तक नहीं खोज पाए !
इंसान अगर अपनी जिंदगी में किसी से डरता है तो वह है मृत्यु ! ये एक सच्चाई है ! इस सच्चाई से हर प्राणी को गुजरना होता है ! हम चाहे कितनी ही दफा कह लें कि हम इस सच्चाई से नहीं डरते, लेकिन हकीकत यह है की हम केवल इसी सच्चाई से डरते हैं ! क्योंकि यही वह पर्दा है, जिसके परे आज तक कोई नहीं देख पाया ! और यही एक पर्दा है, जिसके बाद की जिंदगी को "अब क्या होगा " की सोच और भयानक बना देती है ! परन्तु क्या हम उस पर्दे के पार जाते हैं ?
(TO BE CONTD......)
इंसान अगर अपनी जिंदगी में किसी से डरता है तो वह है मृत्यु ! ये एक सच्चाई है ! इस सच्चाई से हर प्राणी को गुजरना होता है ! हम चाहे कितनी ही दफा कह लें कि हम इस सच्चाई से नहीं डरते, लेकिन हकीकत यह है की हम केवल इसी सच्चाई से डरते हैं ! क्योंकि यही वह पर्दा है, जिसके परे आज तक कोई नहीं देख पाया ! और यही एक पर्दा है, जिसके बाद की जिंदगी को "अब क्या होगा " की सोच और भयानक बना देती है ! परन्तु क्या हम उस पर्दे के पार जाते हैं ?
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