शनिवार, 22 जून 2013

कौन है वो ?? (PART -1)

यदा-यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानंधर्मस्य तदात्मानं सृजाभ्यहम ।। (अध्याय - ४, श्लोक ७ )

अर्थात, इस संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है, और अधर्म अपने पैर पसारता है, तब-तब धर्म को बचाने के लिए मैं इस धरती पर जन्म लेता हूँ ! आज जब कि चारों तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई है, रिश्ते कलंकित हो रहे हैं, चारों तरफ अधर्म का बोल-बाला हो रहा है, तब क्या भगवान् श्री कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिए इस वचन का पालन होने वाला है ! क्या इस युग में भगवान् का अवतार होने वाला है ? यदि होगा तो संसार उन्हें पहचानेगा कैसे ? कैसा होगा वे ? 

भगवान्,जिसे हम आज कई नामों से पुकारते आये हैं, कभी ईश्वर तो कभी अल्लाह, कभी यीशु मसीह तो कभी महावीर, बुद्ध और भी ना जाने क्या-क्या, वास्तव में है क्या ? क्या कोई उपाधि ? जो किसी भी व्यक्ति को उसके महान कार्यों के बदले दी जाती है ! अगर उसी को भगवान् कहा जाता है, जिसने इस दुनिया में आकर महानतम कार्य किये तो ऐसे इंसानों की कमी नहीं है, जिन्होंने इस दुनिया अथवा समाज में महान काम किये, परन्तु फिर भी वे भगवान् नहीं कहलाये !

परन्तु फिर भी कोई है, जो इस दुनिया को चला रहा है । कौन है वह, कैसा है वह ? कोई नहीं जानता, फिर भी सब जानते हैं कि कोई ना कोई तो जरुर है ! जो संसार के समस्त प्राणियों में समाया हुआ है, उस " कोई " के " प्राणी " को छोड़ते ही सब कुछ क्यूँ ख़तम हो जाता है,जो कल तक हम सब के प्यारे होते हैं, उन्हें अपने ही हाथों अग्नि अथवा पृथ्वी के हवाले क्यों कर आते है । इसका मतलब है कि कोई ना कोई तो जरुर है ! 

इस दुनिया का इतिहास गवाह है कि भगवान् के जितने भी अवतार हुए, ऋषि मुनियों की इस पवन धरती पर ही हुए ! संसार के अधिकतर धार्मिक ग्रन्थ भी इसी पवन धरती पर ही लिखे गए ! चाहे वह "रामचरित मानस " हो अथवा " श्रीमद भगवत गीता " ! और तो और आज जिस चाँद और सूरज को जितने के लिए सारा संसार लगा हुआ है, ये तो हमारे ऋषि-मुनि हजारों हजार साल पहले कर चुके थे ! ऋषि भृगु ने तो उस " कोई " के जाकर लात भी मारी थी ! कहते हैं कि एक बार ऋषि भृगु ने सोंचा कि देवता तो सभी हैं, परन्तु उनमे " देवताओं का भी देवता " कौन है ?

(TO BE CONTD....) 



                  

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