रविवार, 16 जून 2013

Father's Day Special..!!

                                                       जाएँ  तो जाएँ कहाँ !!
आज की दुनिया में चारों तरफ भागमभाग मची हुई है । जिसे देखो वही पैसा कमाने के लिए रात दिन एक किये हुए है । स्वयं तो पैसा कमा ही रहे है, साथ ही यह भी चाहते है की उनकी पत्नी भी उनके परिवार के लिए पैसा कमाए । इसलिए आज के ज्यादातर युवक काम काजी लड़की को अपनी जीवन-संगिनी बनाना पसंद करते हैं ।

 यदि इन युवकों से पूछा जाये कि ये जो रात-दिन एक करके पैसा कमा रहे हैं, किसके लिए ? तो शायद इनका जवाब होगा अपने लिए, अपने बच्चों के लिए । जो शायद इस सदी का सबसे बड़ा झूठ होगा ।

क्योंकि युवा पीढ़ी जो यह कहती है कि वे अपने बच्चों के लिए पैसा कमा रहे हैं, से पूछे कि पैसा जो वे अपने बच्चो के लिए कमा रहे हैं, वे उससे अपने बच्चों को क्या वे चीज़े दिला पाएंगे, जिसकी उनका बच्चा तमन्ना करता है तो भी शायद वे ये ही जवाब देंगे : "क्यूँ नहीं पैसा है तो दुनिया की हर चीज़ खरीदी जा सकती है ।" परन्तु शायद उन्हें यह नहीं पता कि दुनिया की हर चीज़ तो पैसे से खरीदी जा सकती है, नहीं खरीदा जा सकता तो माँ-बाप का प्यार । जो आज की इस भागमभाग भरी जिंदगी में ख़तम होता जा रहा है ।

जिस प्रकार, कोई भी मकान बिना नीव के खड़ा नहीं हो सकता, उसी प्रकार किसी बच्चे का भविष्य अपने माँ-बाप के प्यार के बिना नहीं संवर सकता । एक मोटे तौर पर अनुमान लगाया जाये तो हफ्ते के सात दिनों में से एक दिन भी हम अपने बच्चे को प्यार नहीं कर पाते । सवेरे जब बच्चा स्कूल जा रहा होता है तो बाप अपने दैनिक कार्यो में लगा होता है और जल्द बजी में अपने बच्चे के लिए माँ या तो डबल रोटी लगा रही होती है या बच्चे को तैयार करने में लगी होती है । बच्चा दोपहर को स्कूल से घर आता है जब की माँ-बाप का ऑफिस से घर आने का वक्त साढ़े पांच-छ: बजे का होता है । बच्चा आपसे कुछ पूछना चाहता है आप उसे अपनी थकान बता कर माँ के पास भेज देते हैं । माँ शाम का खाना बनाने में जुटी है । ऐसे में बच्चा किसके पास जाये । और फिर रात होते ही सोने की तैयारी ी बच्चा सोंचता ही रह जाता है की वह जाये तो किसके पास ? 

बच्चे का मन कोमल फूल के समान होता है । वंश वृद्धि के लिए बच्चो का इस दुनिया में लाना कोई बड़ी बात नहीं, बड़ी बात है उनको सही दिशा दिखाना, उनमें सुसंस्कार उत्पन करना, अच्छे बुरे का ज्ञान कराना, जो केवल उसके माँ-बाप ही करा सकते हैं, कोई और नहीं ।

सुसंस्कृत बनाने अथवा उनमे अच्छे संस्कार जगाने के लिए यह बात बहुत ही जरुरी होती है, कि हम अपना जितना समय घूमने-फिरने, यार दोस्तों की महफ़िल सजाने में बिताते हैं, उतना समय अपने बच्चो की जिज्ञासा को शांत करने में लगायें । 

बच्चों को उद्दंड अथवा शैतान बनाने में भी माँ-बाप उतने ही सहायक होते हैं जितने की बच्चे स्वयं । होता यह है की जब माँ अथवा बाप बच्चे की तरफ ध्यान नहीं देते तब बच्चा अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ ऐसे क्रिया कलापों का सहारा लेता है, जिससे माँ-बाप का ध्यान उसकी और आकर्षित हो उसे भी परिवार का सदस्य मान कर उसकी भी समस्याओं की तरफ ध्यान दिया जाये । उसे भी वही इज्जत दी जाये जिसका वह हकदार है । पर हो इसका उल्टा जाता है उसके क्रिया कलापों को या तो नजर अंदाज़ कर दिया जाता है अथवा उसे नालायक, निकम्मा आदि विशेषणों से युक्त कर दन्त फटकार क्र भगा दिया जाता है । उसके मन में झाँकने की बजाए, उसके मन की बातों को समझने अथवा उसकी समस्याओं को दूर करने की बजाए हम उससे स्वयं को दूर करते जाते हैं और जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, बच्चो और उनके माँ-बाप के बीच की खाई इतनी चौड़ी हो जाती है कि फिर उनका कमाया हुआ पैसा भी उस खाई को नहीं भर पाता और फिर माँ-बाप सोचने बैठ जाते हैं कि सारी उम्र हमने इतना पैसा कमाया, किसके लिए ? अपने लिए या खाई के उस पार खड़े अपने बच्चों के लिए ।  







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