करके उल्फत की कसम तूने जो खाई होगी ,
तुझको उस वक़्त मेरी याद तो आई होगी ,
प्यार से मैं तुझे कहता था कभी जाने - वफ़ा ,
और तू मुझसे किया करती पैमाने - वफ़ा ,
जब ये दीवारें वफ़ा तूने गिराई होगी ,
तुझको उस वक़्त मेरी याद तो आई होगी ,
तूने खुद आके मेरे घर को सजाया था कभी ,
प्यार से अपने, मेरे दिल को बसाया था कभी ,
और जब तूने उसे आग लगायी होगी ,
तुझको उस वक़्त मेरी याद तो आई होगी ,
ग़म नहीं तूने जो पैमाने वफ़ा तोड़ दिया ,
दो कदम चलकर अगर साथ मेरा छोड़ दिया ,
अपनी मंजिल को किसी और तरफ मोड़ दिया ,
हाँ अगर राह में ठोकर कोई खाई होगी ,
तुझको उस वक़्त मेरी याद तो आई होगी ,
दिल-नशीं होगा वो किस दर्जा सुहाना मंजर ,
जब दुल्हन बनके चली होगी किसी और के घर ,
बन गयी होगी तू वल्लाह हया का पैकर ,
जब कहारों ने तेरी डोली उठाई होगी ,
तुझको उस वक़्त मेरी याद तो आई होगी ,
अब तेरे देस ना जाऊंगा मैं तेरी खातिर ,
लब पे शिकवा भी ना लूँगा मैं तेरी खातिर ,
ये भी गम शौक से उठाऊंगा मैं तेरी खातिर ,
जब किसी ने मेरी रुददात सुनाई होगी ,
तुझको उस वक़्त मेरी याद तो आई होगी ।।
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